कोई भी पुरुष कभी भी अपना जीवन समाप्त करने के लिए आत्महत्या नहीं करता, वो आत्महत्या केवल अपने कष्टों से मुक्ति पाने के लिए करता है। हर वर्ष अनेकों निर्दोष विवाहित पुरुष केवल समाज में व्याप्त पुरुष विरोधी मानसिकता के कारण आत्महत्या कर लेते हैं, जिसका एक छोटा सा उदाहरण आप https://purushvadh.postach.io/ पर देख सकते हैं।
अगर एक जिलाधिकारी के पद पर तैनात IAS और एक एसपी के पद पर तैनात IPS पत्नी के व्यवहार से प्रताड़ित हो आत्महत्या कर सकता है तो एक साधारण आदमी की क्या दशा होती होगी इसका अंदाजा भी लगाना मुश्किल है, और यही कारण है कि National Crime Record Bureau के आंकडों के अनुसार भी हमारे देश में जहाँ पुरुषों के आत्महत्या की दर महिलाओं की आत्महत्या की दर से करीब तीन गुना ज्यादा है, वहीं पतियों के आत्महत्या की दर, महिलाओं के आत्महत्या की दर से ढ़ाई गुना ज्यादा है।
विडंबना यह है कि जब कभी भी कोई विवाहिता आत्महत्या कर लेती है तो मीडिया उसे बढ़ा-चढ़ा कर प्रदर्शित करता है और पुरे पुरुष समाज पर ही पितृसत्ता (patriarchy) का नाम देकर प्रश्न खड़ा कर देता है, इसके विपरीत जब कोई विवाहित पुरुष आत्महत्या करता है तो उसे एक ऐसी पृथक घटना के रूप में प्रदर्शित करता है जिसका किसी भी क्रम से कोई लेने-देना नहीं है। जबकि हकीकत यह है कि यह वैवाहिक जीवन में पुरुष के विरुद्ध हिंसा जैसी एक ऐसी बड़ी समस्या का हिस्सा है जो निरंतर चला करती है।
जब पढ़े-लिखे समझदार लोग ऐसे आत्मघाती कदम उठाते है तो शायद उन्हें अपने कष्टों से मुक्ति मिल जाती हो, परन्तु उनके माता-पिता, भाई-बहन को जो एक नया कष्ट मिलता है, उसका क्या? एक महिला आपको व आपके परिवार को कष्ट दे रही है, आपने केवल खुद की सोचकर, कष्टों से छुटकारा पाने के लिए आत्महत्या कर ली, इससे आपके अपने घरवालो के कष्टों में उनकी सहायता की या उनके कष्टों को और बढ़ाया?
आज के समाज में इस प्रकार के प्रकरणों की कोई कमी नहीं है। आप सभी से करबद्ध निवेदन है कि अगर कभी भी इस प्रकार के नकारात्मक विचार मन में आएं तो कोई भी गलत कदम उठाने से पहले अपने निर्दोष परिवार का भी ख्याल करें और हमारी राष्ट्रीय हेल्पलाइन 8882-498-498 पर निशुल्क सहायता के लिए एक बार अवश्य संपर्क करें।
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