वाराणसी में पुरुषों के एक संगठन ने नारीवादी उत्पीड़न का पिंडदान किया है. इन लोगों का दावा है कि कई मामलों में पुरुषों को बेवजह बलि का बकरा बनाया जा रहा है.
आमतौर पर महिलाओं के उत्पीड़न के केस सुनने में आते हैं. समाज और सरकार इन पर पूरा ध्यान देती हैं. कई केस तो इतने हाई प्रोफाइल हो जाते हैं कि उनका मीडिया ट्रायल भी शुरू हो जाता हैं. लेकिन ज्यादातर ऐसे केसेस में पुरुषों की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता हैं. बहुत से मामलों में पुरुष भी पीड़ित की श्रेणी में आते हैं.
पिछले दिनों एक ऐसी ही घटना ने सबका ध्यान आकर्षित किया. धर्मनगरी वाराणसी में पुरुषों के एक समूह ने पिंडदान किया. बाकायदा गंगा के किनारे समस्त धार्मिक अनुष्ठानों के साथ पिंडदान दिया गया. इन लोगों ने दावा किया कि ये पिंडदान समाज में फैले नारीवाद के खिलाफ हैं. उनके हिसाब से पुरुषों पर अत्याचार बड़ते जा रहे हैं. ये अत्याचार नारीवाद के आड़ में पुरुषों पर किया जा रहे हैं. इसमें समाज के हर वर्ग के लोग शामिल थे जैसे सरकारी और गैर सरकारी पेशे से जुड़े लोग. इन लोगों के इस कार्यक्रम में काफी भीड़ जुटी और बहुत से पुरुषों ने अपना समर्थन दिया.
वहां पर मौजूद अनुपम दुबे जिन्होंने पिंडदान में हिस्सा लिया बताते हैं कि आज पुरुषों की कोई सुनवाई नहीं है. महिला उत्पीड़न पर शोर हर तरफ है लेकिन पुरुषों के अधिकारों के हनन पर कोई आवाज नहीं उठाता इसीलिए इस मॉडर्न डे फेमिनिज्म से परेशान होकर हमने इसका पिंडदान कर दिया. ताकि हम लोगों को इससे मुक्ति मिले.
इन पुरुषों ने अपने दर्द भरी कहानियां भी उड़ेलनी शुरू कीं. इन लोगों ने सेव इंडियन फैमिली के नाम से मूवमेंट शुरू किया हैं. पिछले 13 साल से ये मूवमेंट चल रहा हैं. इसमें देश की लगभग 45 स्वयंसेवी संस्थाएं जुड़ी हैं. अनुपम खुद भी दामन वेलफेयर सोसाइटी के राष्ट्रीय सचिव हैं और इस मूवमेंट से जुड़े हैं. इस मूवमेंट से जुड़े कानपुर के मनीष श्रीवास्तव बताते हैं, "पहले हम लोगों के पास एक-आध शिकायतें आती थीं फिर धीरे धीरे लोग अपने आप जुड़ने लगे और सबकी वही कहानी होती हैं— महिलाओं द्वारा पीड़ित. आप अंदाजा नहीं लगा सकते कि ये पुरुष उत्पीड़न किस हद तक पहुंच गया है.
अनुपम बताते हैं कि सबसे ज्यादा पीड़ित पुरुष दहेज एक्ट के शिकार होते हैं. इसमें सेक्शन 498ए के अंतर्गत कार्यवाही होती है. अगर किसी के वैवाहिक जीवन में कोई परेशानी हुई तो मामला सीधे दहेज उत्पीड़न तक पंहुचा दिया जाता हैं और फिर पुरुष का पूरा परिवार जिसमे बूढ़े मां-बाप भी शामिल हैं सब पर कार्रवाई होती है.
ऐसे केसेस को देखने के लिए अब इन लोगों ने एक हेल्पलाइन शुरू कर दी हैं. जिसका नंबर 8882498498 हैं. अनुपम के अनुसार, "महिलाओं के लिए सरकार की तरफ से बीसियों हेल्पलाइन हैं जिनपर वो अपनी शिकायत कर सकती हैं. लेकिन पुरुषों के लिए कुछ भी नहीं. यकीन मानिये हमारी हेल्पलाइन पर सरकारी हेल्पलाइन से ज्यादा कॉल्स आती हैं."
अब सेव इंडियन फॅमिली मूवमेंट के अंतर्गत ये पुरुषवादी पूरे देश में अपना नेटवर्क बना चुके हैं. अपनी मीटिंग करते हैं. बहुत पुरुष इनके पास अपनी बात ले कर आते हैं. अनुपम बताते हैं कि, "हम लोग पुरुष के हर प्रकार के उत्पीड़न के खिलाफ हैं. जैसे सबसे ज्यादा स्कूल ड्रॉप आउट में लड़के होते हैं."
इस मामले में डॉ तरुशिखा सर्वेश जो अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर वीमेन स्टडीज में असिस्टेंट प्रोफेसर सहमत नहीं हैं. डॉ तरुशिखा के मुताबिक, "हर प्रकार के कानून का दुरूपयोग हो रहा है. ऐसे में जेंडर से सम्बंधित कानून पर अंगुली उठाना ठीक नहीं हैं. ये एक प्रकार का लैंगिक पक्षपात हैं." फर्जी केस में फंसाने वाली घटनाओं के लिए कानून का पालन करवाने वाली संस्थाएं भी जिम्मेदार हैं.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार देश में महिलाओं के प्रति अपराध में बढ़ोत्तरी दर्ज हुई हैं. वर्ष 2016 में जो केस दर्ज हुए, उसमें पुरुष द्वारा अत्याचार के मामले सबसे ज्यादा 32.6% हैं. इसके बाद शीलभंग की नियत से की गई घटनाएं हैं, करीब 25 फीसदी.अपहरण लगभग 19% और रेप 11.5% केस हैं. कुल मिलाकर देखा जाए तो महिलाओं के प्रति अपराधों में लगातार वृद्धि ही हो रही है.
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